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हम सब खिलौने हैं / गोपालदास "नीरज"

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हम सब खिलौने हैं!
ढीठ काल-बालक के हाथों में
फूलों के बेहिसाब दौने हैं!
हम सब खिलौने हैं!

जन्मों के निर्दयी कुम्हार ने
साँसों के चाकों पर हमको चढ़ाया है,
तरह-तरह माटी ने रूंदा है जब
तब यह अनूप रूप हमको मिल पाया है,
सब को हम मनहर हैं,
ऊपर से बहुत-बहुत सुन्दर हैं,
लेकिन हम भीतर से रिक्त और बौने हैं!
हम सब खिलौने हैं!!

हम से हर मेले की शान है,
हम से नुमायश हर लगती है,
हमसे हर आंगन बहलता है,
हम से दुनिया की हर एक दुकान सजती है,
लेकिन इतने पर भी
ये सब गुण रखकर भी,
हम मरण-ग्राहक के वास्ते बिछाये निज
बिछौने हैं!
हम सब खिलौने हैं!!

स्वत्व है हमारा बस इतना ही
कोई भी हम से आ खेले,
औ' खेल-खेल में ही हमें तोड़ दे,
गेह-गाँव-नगर वही अपना है,
वक्त का खिलाड़ी हमें जाके जहाँ छोड़ दे,
यद्यपि हम धूलि हैं, बिकते हैं,
नाशवान होने से घिसते हैं,
चुकते हैं
लेकिन हम हैं तो सब खेल यहाँ बार-बार
होने हैं !
क्योंकि हम सब खिलौने हैं!