हम सब ताड़न के अधिकारी / दीपा मिश्रा
पाँच बजे अलार्म बजबासँ पहिने
हम उठैत छी
छः बजे चाहक पहिल घूंट ल'
अखबारक पन्ना खोलैत छी
प्रताड़णा,हत्या, बलात्कार,शोषणसँ भरल समाचारकेँ पन्ना उनटाबैत
जलखइ टिफिनक व्यवस्थामे जुटैत छी
नौ बजे तक चकरघिन्नी जेना नचैत
सबके अपन अपन ठाम खुआ पिआ विदा क'
दस बजे ठीक आफिस पहुँचैत छी
हमर मुड़ी फाइल पर गरल रहैये
कतेको नजरि हमरा ऊपर ससरैये
डेढ़ बजे ब्रेक लेल उठैत छी
रतुका बसिया रोटी भुजिया पानि संग कहुनाके गिरैत छी
तीन बजे बाॅस बजबैत छथि
नीक काज लेल शबाशी संग
पीठ पर हाथ होंसतैथ छथि
ससरैत साँपकेँ हाथसँ छिटकी हटबैत
कहुनाके अपनाकेँ ल' ओतयसँ बहराइत छी
सहकर्मीक आँखिक किरकिरी बनल
काज दिस मोनकेँ बहटारैत छी
चारि बजे चपरासी दीदी कारी चाह लेने अबैये
रातुक भोगल अपन चोट उघारिके देखबैये
ओ त'अपन दुखरा सुना मोन हल्लुक क'
चाहक खाली कप लेने चलि जाइए
हमर माथमे भोरका अखबारसँ ल'
एहि दीदीक सबटा गुत्थी ओझराइत जाइए
पांच बजे लैपटॉप बंद करैत छी
छः बजे तक तीमन तरकारी दवाइ लेने
घरक चाभी पर्ससँ बहरबैत छी
सब किछु समेटि तुलसीकेँ दीप धूप बारैत
सात बजेसँ भनसाघर जाके
आठ बजिते केवाड़ खोलि प्रतीक्षा लेल
बैसेत छी
चाह पीबि टीवीक ज़ोर अवाजसँ माथ भन्ना जाइए
आवाज कम करबाक लेल कहला पर
आरो ओकरा बढ़ा देल जाइए
नौ बजे हमरा पर तमसाइत छथि
सौ सँ ऊपर हमरा द्वारा भेल ग़लतीकेँ
दोहराबैत छथि
दस बजे तक हम अपना प्रति हीनभावसँ भरि जाइत छी
सबकेँ खुआ अपने बिना खेने सुतबाक उपक्रम करैत छी
देह मात्रक पूर्ण व्यवहार क' पीठ हमरा दिस घुमा देल जाइए
ग्यारह बजे टूटल हारल जीवनसँ उबरबाक लेल आत्महत्या लेल विचार करैत छी
माए पिता,बच्चा सभक मुँह नाचि उठैये
हमर गेलाक बाद ओकर सभक की स्थिति हेतै सोचिते सोचिते बारह बाजि जाइए
मुँह दाबिके कनेक काल हम कनैत छी
उठिके पानि पीबी बिछाओन पर घुरि अबैत छी
एक बजे अपनाकेँ पाँजरमे भरिके हम
पाँच बजे भोरक अलार्म लगा सुति जाइत छी
बुझबामे आबि रहल हम किएक अग्नि परीक्षा देलौं,
किएक भरल सभामे आंचर उतरबेलौं
किएक पाथर बनिके पुनः ओकरेसँ उद्धारक प्रतीक्षा केलौं
इएह हम रही, इएह हम रहब, इएह हम छी
सत्त कहलौं अहाँ,
हम सरिपहुँ ताड़न के अधिकारी छी !