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हम सर्जक हैं समय-सत्य के / महेंद्र नेह

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हम सर्जक हैं समय-सत्य के
नई ज़िन्दगी को स्वर देंगे ।

मैली बहुत कुचैली चादर
घर की मर्यादा बतलाकर
इसे नहीं धोने देते हैं
मुरदा-संस्कृति के सौदागर
            वे इसको जर्जर करते हैं
            हम इसमें तारे जड़ देंगे ।

पाखण्डों के नगर बसाकर
प्रवचन झाड़ रहे हैं तस्कर
जिधर दृष्टि डालो पतझर है
यह कैसा आया संवत्सर
            वे युग को बर्बर करते हैं
            हम इसमें अमृत भर देंगे ।

एटम-डालर की ताक़त पर
रौब गाँठते दुनिया-भर पर
यह तो उनका मरण-पर्व है
समझ रहे जिसको जन्मान्तर
            वे इसको कर्कश करते हैं
            हम इसको नव लय स्वर देंगे ।