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हम साथी / त्रिलोचन

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चोंच में दबाए एक तिनका

गौरय्या

मेरी खिड़की के खुले हुए

पल्ले पर

बैठ गई

और देखने लगी

मुझे और
कमरे को ।

मैंने उल्लास से कहा

तू आ
घोंसला बना
जहाँ पसन्द हो

शरद के सुहावने दिनों से

हम साथी हों ।