हम सिर्फ़ हमले करते हैं अपने होने के / नीलोत्पल
तुम जो कह रहे हो
वह तुम्हारी बात नहीं
तुम्हारी बात अभी हुई ही नहीं
तुम सिर्फ़ मुद्राएं बदलते हो
जख़्मों पर रखे हैं
तुम्हारे शब्द
क्या तुम जानते हो
अपने बहते रक्त के बारे में
मैं जब आता हूं तुम्हारी ओर
इस तरह नहीं कि
तुम्हें याद दिलाता हूं
या किसी हार-जीत पर
या सहमत होने के लिए
एक बार हम दौड़ते हैं
अनजान होने के लिए
हम गुम होते हैं
हम छोड़ जाते हैं
अपने पत्थर, हाथ, शब्द और बीमारीयां
हम मुक्त होते हैं हथियारों से
हम देखते हैं अविरल नदी
धुले हुए घाव, अपने सलीब
और छोड़ी हुई नौकाएं
अब कोई बात नहीं।
यह जानना ज़रूरी नहीं
हमने शुरूआत कहां से की थी
हम कहां हैं
हम सिर्फ़ हमले करते हैं अपने होने के
हम सच के लिए सच
और झूठ के लिए सच नहीं बोलते
यह व्यवस्था के मातहत है,
लोकतंत्र के,
या इनसे उपजी मजबूरी के
हम सिर्फ़ इन्हीं की ज़बान बोलते हैं
हम ख़ुद को रखने के लिए नहीं
अपने ख़ारिज़ होने को बोलते हैं
मैं जब बाहर होता हूं
मुझे कुछ नहीं घेरता
मैं तलाश करता हूं
मैं सच या झूठ के लिए नहीं
अपने होने के लिए बोलता हूं
अपना होना बोलता हूं