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हम स्वप्नों के पीछे-पीछे / सुनील त्रिपाठी
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					हम स्वप्नों के पीछे-पीछे, स्वप्न हमारे आगे आगे। 
भरी नींद हम प्यार ढूंढते रहे, रात भर जागे जागे। 
चूम चूम कर हवा लगाती, रही गले बादल को कस कर। 
दूर हो गयी पल में वह भी, आँचल कभी छुड़ाकर हँस कर। 
त्रिया चरित्र हवाओं का कब, समझ सकेंगे मेघ अभागे
भरी नींद हम प्यार ढूंढते रहे—————
चुन चुन मृदुल भावनाओं को, सम्बन्धों में रहे पिरोते। 
होकर दूर, रहे हम प्रतिदिन, पल-पल तुमको पाते खोते। 
फूट फूट कर रोए, जिस दिन सम्बन्धों के टूटे धागे
भरी नींद हम प्यार ढूंढते रहे—————
तुम बिन यह एकाकी जीवन, किसी मरुस्थल-सा निर्जन है। 
प्यास प्रेम की लिए अधर पर, भटक रहा अति व्याकुल मन है। 
गर्म रेत पर तृप्ति हेतु अब, मृग यह भला कहाँ तक भागे
भरी नींद हम प्यार ढूंढते रहे—————
	
	