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हम हक़ीक़त ही रहे आप मगर ख़्वाब हुए / रवि सिन्हा

हम हक़ीक़त ही रहे आप मगर ख़्वाब हुए ।
मुझ तसव्वुर<ref>कल्पना, ख़याल (imagination)</ref> की ज़मीं आप ही शादाब<ref>हरा-भरा, सरसब्ज़ (green, verdant)</ref> हुए ।

बस के साहिल<ref>किनारा (shore)</ref> की तरफ़ खिंच के चले आते हैं
हम समन्दर थे मगर इश्क़ में पायाब<ref>उथला पानी, जो गहरा न हो (shallow)</ref> हुए ।
 
फ़र्क़ करना तो मगर आये है सूरज को भी
हम तो पत्थर ही रहे और वो महताब हुए ।

एक ही दुख का नगर मुख़्तलिफ़ मन्ज़र देखे
नज़रें वीरान हुईं चश्म वो सैलाब हुए ।

ये महारत कि तवारीख़<ref>इतिहास (histories)</ref> में साकित<ref>निश्चल, गतिहीन (at rest)</ref> सदियों
हिन्द में ख़ल्क़<ref>अवाम (people)</ref> हुए दहर<ref>युग, काल (era)</ref> में गिर्दाब<ref>भँवर (vortex)</ref> हुए ।

आज बाज़ार में पहुँचे तो कल के कोहे-गिराँ<ref>बड़े पहाड़ (big mountains)</ref>
इस तबो-ताब<ref>चमक दमक (razzle-dazzle)</ref> में इक तश्त-ए-सीमाब<ref>पारे की तश्तरी (a saucer full of mercury)</ref> हुए ।

क़त्ल हो आयें अगर फ़ैज़ हों, ग़ालिब डूबें
अब जो दुश्नाम<ref>ग़ाली (abuse)</ref>-ज़ुबाँ साहिबे-आदाब<ref>शिष्टाचार, तहज़ीब (culture)</ref> हुए ।

शब्दार्थ
<references/>