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हम हैं और शुग़ल-ए-इश्क़-बाज़ी है / 'ज़ौक़'
Kavita Kosh से
हम हैं और शुग़ल-ए-इश्क़-बाज़ी है
क्या हक़ीक़ी है क्या मजाज़ी है
दुख़्तर-ए-रज़ निकल के मीना से
करती क्या क्या ज़बाँ-दराज़ी है
ख़त को क्या देखते हो आईने में
हुस्न की ये अदा-तराज़ी है
हिन्दू-ए-चश्म ताक़-ए-अबरू में
क्या बना आन कर नमाज़ी है
नज़्र दें नफ़्स-कुश को दुन्या-दार
वाह क्या तेरी बे-नियाज़ी है
बुत-ए-तन्नाज़ हम से हो ना-साज़
कार-साज़ों की कार-साज़ी है
सच कहा है किसी ने ये ऐ 'ज़ौक़'
माल-ए-मूज़ी नसीब-ए-ग़ाज़ी है