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हम हैं ख़ुशबू / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
जब कभी हम अँधेरों के घर जाएँगे ।
उनका आँचल उजालों से भर आएँगे ।
अपनी आँखों में पाले हैं हम बिजलियाँ
हर तरफ़ खोल कर प्यार की खिड़कियाँ
उड़ते जाते हैं हम जिस तरह तितलिया
देखना ये गगन घूम कर आएँगे ।
है हमारी हँसी ख़ूबसूरत बड़ी
है हमारी हँसी मोतियों से जड़ी,
है हमारी हँसी जैसे एक फुलझड़ी,
हम हँसेंगे जहाँ मोती झर जाएँगे ।
कोई चंदा कहे कोई तारा कहे,
कोई लल्ला तो कोई दुलारा कहे
और कोई हमें फूल प्यारा कहे
हम हैं ख़ुशबू हवा में बिखर जाएँगे।