हम हैं महान संस्कृति के वारिस / राजेन्द्र सारथी
हम हैं महान संस्कृति के वारिस
सब बराबर हैं हमारे यहां।
युगों लंबी परंपरा है हमारी
राजा हो या रंक
सभी एक आकाश के नीचे रहते आए हैं
सभी किसान का बोया अन्न खाते हैं
नदी, कुओं, बावड़ियों का पानी पीते हैं
जीने के अपने-अपने सुभीते हैं।
आधुनिक युग में भी
हमारी सभ्यता ने दिखाई है उदारता
दी है हर नागरिक को
लोकतंत्र की आरती उतारने की स्वतंत्रता
जयकारे बोलने की स्वतंत्रता
मतदान करने की स्वतंत्रता
हम हैं महान संस्कृति के वारिस
सब बराबर हैं हमारे यहां।
हमारी महान संस्कृति से सराबोर लोकतंत्र
सबको देता है मनमर्जी से जीने का अधिकार
जो बच्चे नहीं पढ़ना चाहते
मिल जाता है उन्हें अनपढ़ रहने का अधिकार
कर सकते हैं वे अपनी उच्च संस्कृति को समृद्ध
नंगे बूचे रहकर
साधु-संन्यासी बनकर
ओझा-तान्त्रिक बनकर
या ठग-विद्या में परारंगत होकर
हम हैं महान संस्कृति के वारिस
सब बराबर हैं हमारे यहां।
हमारे लोकतंत्र में
चमत्कार को है नमस्कार
हर व्यक्ति सामर्थ्यानुसार अपना सकता है रोजगार
बन सकता है श्रमिक, साहूकार, उद्यमी
शिल्पकार, दलाल, अनुसंधानी
ललित कलाओं का उत्थानी
छल-छंद का कारोबारी या भिखारी
किसी पर कोई बंदिश नहीं
चाहे तो उच्च वर्ग का व्यक्ति
रह सकता है निम्न वर्ग का लबादा ओढ़कर
या निम्न वर्ग का व्यक्ति
उच्च वर्ग का बनकर दिखा सकता है अपनी प्रतिभा
महिलाएं भी हैं इनमें शामिल
उन्हें भी है पूरी स्वतंत्रता
वे बनें लोकतंत्र का हिस्सा
या संभालें घर-परिवार
करें चाकरी या निभाएं पुरातन संस्कार
पुरुष की तरह कला-संस्कृति में हों पारंगत
या अपनाएं देह व्यापार
हम हैं महान संस्कृति के वारिस
सब बराबर हैं हमारे यहां।
हमारे संस्कृति ने
पेड़-पौधों, नदी-पहाड़ों
पशु-पक्षियों, जीव-जन्तुओं
कीट-पतंगों, ऋतुओं
सबको दिया है आदर-सम्मान
माना है अपना देवता
भरे पड़े हैं हमारे ग्रंथ स्तुति वंदना में
अतिथि को भी माना है हमने देवता
स्त्री को दिया है देवी का दर्जा
हमारी संस्कृति में बाहुल्य है सम्मान का
हम अतिथि के सम्मान में
अपनी स्त्रियां परोसते आए हैं
नियोग विधि से चलाए हैं हमने अपने वंश
हम हैं महान संस्कृति के वारिस
सब बराबर हैं हमारे यहां।