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हम / रामकृष्ण
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कँपसल के भरल आँख के पानी निअन ही हम,
कहलो न कहल जाए, कहानी निअन ही हम॥
असरे में चपोतल रहल दोहर निअन जिनगी।
घुमरी के लहर ओढ़ जुआनी निअन ही हम॥
लहरा के रगे-रग समुन्नर में उठे आग।
जिनगी के ओकर एक निसानी निअन ही हम॥
बनके, बनाके मनके उगाहे जे साँस भर।
तिल भर पिरीत के उ चिन्हानी निअन ही हम॥
हमरा न कोई सरधा न हिरिस हे दुलार के।
समझे तो फूल न तो टिकानी निअन ही हम॥
इतरा के चमक जाहे जे सावन मे ंअचक्के।
ऊ कार अँन्हरिआ के रवानी निअन ही हम॥