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हयात मौत का ही एक शाखसाना लगे / सरवर आलम राज़ ‘सरवर’
Kavita Kosh से
हयात मौत का ही एक शाख़साना लगे
हमें ख़ुद अपनी हक़ीक़त भी इक फ़साना लगे
गुमान, आगही तू, मैं, उमीद, नौमीदी
हमें सभी ग़म-ए-हस्ती का कारख़ाना लगे
जो दर्द है वो तिरे कर्ब की निशानी है
जो साँस है वो तिरा याद का बहाना लगे
परे है सरहद-ए-इद्राक से वुजूद तिरा
अगर मैं सोचूँ तुझे, मुझको इक ज़माना लगे
ये मेरी आरज़ूमन्दी!ये मेरी महरूमी
ख़ुदा ख़ुदा तो रहे पर ख़ुदा ख़ुदा ना लगे
खु़दी ने खोल दिए राज़-ए-बेख़ुदी हम पर
क़दम क़दम पे हमें तेरा आस्ताना लगे
वो तेरी याद की ख़ुश्बू, उमीद की आहट
समंद-ए-शौक़ को गोया कि ताज़याना लगे
ज़माना तुझ को ख़िरदमंद लाख गर्दाने
मगर हमें तो ऐ "सरवर"! तू इक दिवाना लगे