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हरगिज़ तू न ले साथ रक़ीब-ए-दग़ली कूँ / वली दक्कनी
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हरगिज़ तू न ले साथ रक़ीब-ए-दग़ली कूँ
मत राह दे खि़लवत मिनीं ऐसे ख़लाली कूँ
तेरे लब-ए-याक़ूत उपर ख़त-ए-ख़फ़ी देख
ख़त्तात-ए-जहाँ नस्ख़ किये ख़त-ए-जली कूँ
ऐ ज़ुहरा जबीं किशन तेरे मुख की कली देख
गाता है हर इक सुबह में उठ रामकली कूँ
ऐ महजबीं महर-ए-लक़ा तेरी जबीं पर
करता हूँ हर इक दम मिनीं दम नाद-ए-अली कूँ
मैं दिल कूँ तेरे हाथ दिया रोज़-ए-अज़ल सूँ
मत दिल सूँ बिसार अपने महब्बे-अज़ली कूँ
नहीं मंसब-ओ-जागीर नहीं रोज़ वज़ीफ़ा
हर रोज़ तेरा नाम वज़ीफ़ा है 'वली' कूँ