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हरश्रृंगार / आनंद खत्री
Kavita Kosh से
अवर्तमान आदित्य के संयोग से
शरद ऋतू के आगमन पर
शीत ऋतु का विज्ञापन लेकर
हजारों दीयों के से टिमटिमाते
हरश्रृंगार के फूल
तुम्हारे साथ की खुशबु पा कर
मेरे अंतर मन में बस से गए हैं।
अक्सर ही मेरा मन
व्याकुल हो जाता है हरश्रृंगार के इस अभ्यास से
जीवन-दिन का उजाला जब लुप्त हो जाता है
तो शायद अपने लिए ही या उजाले के अभाव को मिटाने
यह फूल खिलते हैं और चढ़ती हुई लालिमा को प्रणाम करके
बिखर जाते है...