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हरसिंगार / श्रीविलास सिंह
Kavita Kosh से
मैं जब सोचता हूँ
मौसमों के बारे में
दूर कहीं अतीत की किसी सड़क पर
पीछे छूट गई एक पगली-सी लड़की
बेसाख़्ता याद आने लगती है
मैं जानता हूँ अब वहाँ
कोई सड़क नहीं बची है
और न ही रुकी हुई है
वहाँ कोई लड़की
मेरी प्रतीक्षा में हरसिंगार के नीचे,
पर सोचता हूँ
उसका वहाँ स्मृतियों में होना
ज़रूरी है जीवन में
जीवन की उपस्थिति के लिए
एक उम्मीद की तरह,
जैसे शकुन्तला की कहानी में
होती है उपस्थित
दुष्यन्त की राजमुद्रा,
स्मृतियों को जिया नहीं जा सकता
फिर उसी बिन्दु से
जहाँ छूट गई थी वह पगली लड़की
और फिर से नहीं चला जा सकता
अतीत की उसी सड़क पर
लेकिन सपनों का क्या
जो आज भी लौट-लौट जाते हैं
उसी सड़क पर
जहाँ आज भी खिलते हैं हरसिंगार
और जहाँ अब कोई नहीं है
प्रतीक्षारत ।