हरामज़ादी सरहदें और झण्डे / सॉनेट मंडल / तुषार धवल
कोई आनन्द नहीं हो सकता
मरे पशुओं का उत्सव करने में।
गाय तो कब की मर चुकी है
और सूअर यहाँ वहाँ बिखरे पड़े हैं।
कुछ पैर अभी भी थरथरा रहे हैं।
माटी से —
कुछ के अँकुर फूट आए हैं
कन्द की तरह उनकी देह
ज़मीन के भीतर दबी है
तुम सबने गूँगे पशुओं को शहीद कर
फिर से एक पाठ गढ़ लिया है।
तुम कट्टरों के लिए
ये गूँगे और अस्पष्ट पन्ने
सबसे आसान थे विकृत करने को
कि हंगामा खड़ा किया जा सके
कविता की स्पष्टता भी अभी
किसी मदहोश अस्पष्टता में फँसी हुई है
और सभी इन्तज़ार में हैं
आँसुओं के इन्तज़ार में
उस कठोर आकाश से
जो भारी है लेकिन सहनशील। वे सब
नाटक कर रहे हैं निष्क्रियता का
चोरी छिपे नज़रें मिलाते हैं
देश की सीमा के बलात्कार पर
गलियों में
पूरी अटलता से
एक जल प्रलय उतरेगा आकाश से
क्योंकि तर्क खो चुके हैं इन अन्धेरों में
चिढ़े हुए इन सन्देशवाहकों को तब
तलवारों और धर्म-ध्वजों का व्यूह भेद कर
निकलना होगा
नोंकों और छोरों से
चीरते हुए उनके उपदेशों को
इन हरामज़ादी सरहदों पर।
मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : तुषार धवल