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हरास फैल गया है ज़मीन-दानों में / 'साक़ी' फ़ारुक़ी

हरास फैल गया है ज़मीन-दानों में
क़यामतें नज़र आती हैं आसमानों में

न जाने किस की नज़र लग ई इन आँखों पर
जो ख़्वाब देखती थीं ख़ौफ़ के ज़मानों में

यहाँ ख़याल के सोतों से ख़ून फूटेगा
सराब के लिए जंगें है सार-बानों में

ये कौन हैं कि ख़ुदा की लगाम थामे हुए
पड़े हुए हैं क़नाअत के शामियानों में

मैं अपने शहर से मायूस हो के लौट आया
पुराने सोग बसे थे नए मकानों में