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हरा नहीं हो सकता है / कमलेश द्विवेदी
Kavita Kosh से
जो जड़ से ही सूख गया हो हरा नहीं हो सकता है।
जो भीतर से भारी होता
हलकी बात नहीं करता है।
वर्तमान की बातें करता
कल की बात नहीं करता है।
जो पल-पल ही छलक रहा हो भरा नहीं हो सकता है।
जो जड़ से ही सूख गया हो हरा नहीं हो सकता है।
सदा छल-कपट करने में ही
जिसके मन को है सुख मिलता।
जो जीवन में अपनाता बस
धोखेबाज़ी और कुटिलता।
जो मन से ही खोटा हो वह खरा नहीं हो सकता है।
जो जड़ से ही सूख गया हो हरा नहीं हो सकता है।
जो नदिया कि तरह न मीठा
और न सागर-सा गहरा हो।
जिसमें ना पर्वत-सा साहस
ना धरती-सा धैर्य भरा हो।
वो नदिया-पर्वत-सागर या धरा नहीं हो सकता है।
जो जड़ से ही सूख गया हो हरा नहीं हो सकता है।