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हरा समूचा आकाश / पारुल पुखराज
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पारुल पुखराज
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हरा समूचा
आकाश है
डूबा
सुआपंखी
मन
रोको
सुग्गों का
आर्तनाद
गाढ़ा
तीखा
अशान्त