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हरा हो जाता है ठूँठ / मदन गोपाल लढ़ा

Kavita Kosh से
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बाईस लड़के
सात लड़कियां
बीच में गुरूजन
बी. ए. फाइनल की
विदाई के मौके
खिंचवाया यह ग्रुप फोटो।

वक्त की गर्द ने
फोटो के साथ
धुंधलाई स्मृतियां
मैं बताता हूँ
चाव से
एक-एक सहपाठी का नाम
याद करके
बरबस ही ठहर जाता हूँ
उस चेहरे पर आकर
जिस ताक रहा हँू मैं
फोटो में भी।
जान-बूझकर
भूलने का दिखावा करता हूँ
मगर अंदर ही अंदर
हरा हो जाता है
कोई ठूंठ
फूटने लगती है
हरी-हरी शाखाएँ।

सहसा
सिमट जाती है शाखाएँ
जब टोकती है बिटिया-
'पापा अगली फोटो दिखाओ ना!'