भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हरिओम् शांतिः (देशभक्ति कविता) / आभा झा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

माँ भारतीक आशीष भेटल
अछि शस्त्र शास्त्र संकल्प अटल,
केहनो विपरीत परिस्थिति मे
संतति किंचित नहि हो निर्बल।

अंतर हृदयक नव कलश उपरि
प्रज्वलित देशप्रेमक। प्रदीप,
जड़ि जाय फतिंगा बनल शत्रु
जौं नाचय एहि ज्वाला समीप।

जाधरि धरती-नभ चान-सूर्य
प्रतिमान गढ़ब प्रगतिक पथ पर
निर्बाध करब भारत-भू केँ
प्रहरी बनि सतत रहब तत्पर।

सुनि शंखनाद समरांगन मे
रिपुदल भड़कत भऽ भयाक्रांत
ओ भगजोगनी भूलुण्ठित हो
हम विज्जुलता रहबै निभ्रांत।

नागार्जुन केर निर्भीक शब्द
हम वीर काव्य छी दिनकर के
घनघोर घटा जौं घिरि आओत
हम बनब कंगुरिया गिरिधर के।

अर्जुन केर गांडीवक गर्जन
तर्जनी चढ़ल चक्रक प्रहार,
रण में रणचंडीक खड्ग बनल
चट-चट पीयब शोणित टघार।

भैरवी नयन अनुरंजित कऽ
हुंकार भरब भरि धरा-व्योम
मंत्रोच्चारण वेदक। होयत
हरिओम् शांतिः! हरिः! हरिओम्!