भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हरियर लेमुआ हे हरियर जोवा केरा खेत1 / मगही

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

हरियर<ref>हरा</ref> लेमुआ<ref>नींबू</ref> हे हरियर जोवा<ref>यव, जौ</ref> केरा<ref>का</ref> खेत॥1॥
एक अचरज हम सुनलूँ, दुलरइते बाबू के मड़वा<ref>मण्डप</ref> जनेऊ।
मड़वहिं बैठल दुलरइते बाबू, गेंठ जोड़ि<ref>गाँठ जोड़ना-पति-पत्नी की चादरों के छोर में धान, दूब, हल्दी और द्रव्य आदि रखकर बाँधने की प्रक्रिया।</ref> दुलरइते सुहवे<ref>सुहागिन</ref> हे॥2॥
बेदिअहिं<ref>बेदी पर</ref> घीउ<ref>घृत</ref> हे ढारिये गेल, सगरो<ref>सर्वत्र</ref> भेइ गल इजोर<ref>प्रकाश</ref>।
सरग<ref>स्वर्ग में</ref> अनंद भेल पितर लोग, अबे बंस बाढ़ल<ref>बढ़ा</ref> मोर॥3॥

शब्दार्थ
<references/>