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हरियाणवी बारा-कड़ी / रामफल चहल

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काका तन्नै मैं कहूं चालणा पड़ैगा मेरे साथ
यू.पी. तै बहु ल्यावंगे ना लागै हरियाणे म्हं हाथ


खाखी सारे हो लिए इब मिलता न रोजगार
खानदानी सब भूखे मरैं गैलड़ां की हुई तार


गुड़-गोबर सारा हुअया आच्छें झौंकें भाड़
देश गरत म्हं जा रह्या खावै खेत नैं बाड़


घुघ्घू सग़ले हो लिए किसै धौरै बची न धरती
लाखां रिश्वत मांगते जब होणा चाहवंा भरती

डड्डू नेता हो गए बदलैं पार्टी रोज
नोटां की गड्डी मिलै साथ म्हं सारे भोज


चाचा चहल चाह रह्या सबकी चाहत पूरी होय
चाहत मैं चाहत खो गई क्यूकर चाहत रहती दोय


छतरा-पण पाच्छै गया आजाद हुअया इब देश
राजा भिक्षा मांगते अर राज करैं दरवेश


जच्चा दफ्तर जंच रही बड़े अफसर के पास
कन्या भ्रुण गिरवाए कै करैं सपूत की आस


झूंझणा झणकाय कै नेता मांगै वोट
कुर्सी ऊपर बैठ कै करैं नोट पै चोट


ञयञां कतैयां ला रहे ना करते सीधे काम
चणा भाण्ड़ नै फोड़ रहै जों गोझ म्हं हो दाम


टेर उसी की टेरणी जो राक्खै तेरी टेक
टेक राखणियां टकरा जा तो मारै गोझ म्हं मेख


ठाली मत ना बैठिए जब आवैं रिश्वत के नोट
जै लेता पकड़ा जावै तो दिए दुगणे पायां लोट


डर कै सदा ए चालिए कदे रंगे हाथ ना थ्याइये
किसै नै बेरा पाटै तो उसते ऊपर दूणे पहोंचाइये


ढूंढ रह्या जै ढूंढ नै क्यूं ढूंढै ढूंढ-ढूंढ
जै ढूंढ ढूंढणा चाहवै सै तो कुर्सी के म्हं ढूंढ


णुण तेल जै चाहिए तो ना सुणिये किसी का रोल़ा
बालकां का दाखला चाहवै सै तो ले ज्या नोटां का झोल़ा


तात्ती तात्ती खा रहे इतरावैं तलवे चाट चाट
बड़या के पायां लोट कै कर ज्यां ठाट बाट


थिरक रहे सब होटल म्हं जड़ै बिकै काच्चे पाक्के मांस
पिससे आल्यां कै लिपट मरैं गरीब म्हं तैं आवै बांस


दादा सड़ रह्या खाट म्हं दादी नै टूक ना थ्यावै
ए. सी. कार म्हं बैठ कै रोज पोत्ते पीजा खावैं


धीरज धरम ना धारते धक्के रहे सब खाए
शेर नै बकरी मार रही देखो कलजुग का न्याय


ना नुकर नेता करै काढै़ं सब म्हं खोट
नाक रगड़ तलवे चाटैं चाहिएंगे जब वोट


पप्पा पुलिस पुकारती जब चोर हाथ न आए
धर्मक्षेत्र म्हं बैठ कै कोठे रहे चलवाए



फाफा फूं फूं ना करै क्यूं सांप ज्यूं रह्या फुफकार
बणी म्हं सौ साअ्ले बणज्यां ना कोए बिगड़ी का यार


बेबे बाट नित देखती कद भाई मिलण नै आवै
जब बाबु बेरा पाड़ता तो सालियां घर पावै


भूल भ्रम म्हं भटकते भली करैं ना एक
भीतर म्हं काला रहै ऊपर तै बणैं नेक


मामा मैं मैं क्यूं करै क्यूं बकरी ज्यूं मिमयावै
जब पिस्से सपड़ज्यां कोई जात ना बूझण आवै


यो यमराज भी टलज्या सै जै रिश्वत म्हं नोट धकावै
बिन पइसे खड़या देखता जणुं धुम्मर म्हं गधा लखावै


रो रो रूदन मचा रह्या धन हाथ किस तरियां लागै
छोहरी आलां नै लूटता छोहरे आले देख कै भागै


लपर लपर लार गेरते देख पराया माल
नोटां की गड्डी थ्यावंती ए लेवै गोझ म्हं घाऽल


वाह वाही सब चाहवते चमचें राखैं साथ
गरीब के धक्के मारते ढाड्डे ते मिलावैं हाथ


सासु सुसरा कह रहें हाम बहू फूंकणी चाहवैं
उसते पिण्ड छुड़वाए कै दहेज दुबारा ल्यावैं


हा हा ही ही कर रहे सब राग बेताले गावैं
छोहरी ना पैदा करै क्यूंकर आग्गै वंश चलावैं