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हरियाली के प्रचारक / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
हरियाली का नाम लेते ही
हरी हो जाती हैं उनकी
तिजोरियां
स्त्रियाँ
और पीढियाँ
उन्हें पसंद नहीं
सूखी जेबें
लोग
और प्रदेश
वे हरे प्रदेश में जाते हैं
हरियाली खाते-पीते
ओढते-बिछाते हैं
और सुखाड़ पड़ते ही वहाँ
निकल पड़ते हैं
कहीं और
हरियाली की तलाश में