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हरियाली / अपूर्व भूयाँ
Kavita Kosh से
एक झोंका हरियाली आकाश में
कहीं सुन रहा हूँ राग मेघ-मल्लार
बारिश के बूँदे टपक रहा है
हरियाई में
बारिश में भीगा हुआ एक नदी में तैर रहा हूँ
मेरा साँस हरा
हवा भी हरा
एक प्राचीन मंदिर की दरवाज़ा खुल रहा हूँ
दूर से बहके आ रही है शंख की ध्वनि
हरा रौशनी में एक दर्जिन चिड़िया
हरा पत्ते से बखिया रही है घोंसला
हृदय के एकांत में सुन रहा हूँ
उसकी चहक ।