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हरिया उठता है / सांवर दइया

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भूल-से ही सही
सूख रही किसी शाख पर ठूंठ की
फूट आए जो कोंपल कहीं कोई

ठूंठ हो रहा
ठूंठ फिर ठूंठ नहीं रह जाता
हरिया उठता है मन-ही-मन
हरियाता है जैसे
भरा-पूरा गाछ कोई !