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हरि का मन से गुणगान करो / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

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हरि का मन से गुणगान करो,
तुम और गुमान करो, न करो।
स्वर-गंगा का जल पान करो,
तुम अन्य विधान करो, न करो।

निशिवासर ईश्वर ध्यान करो,
तुम अन्य विमान करो, न करो।
ठग को जग-जीवन-दान करो,
तुम अन्य प्रदान करो, न करो।
दुख की निशि का अवसान करो,
उपमा, उपमान करो, न करो।
प्रिय नाह की बांह का थान करो,
तुम और वितान करो, न करो।