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हरीतिमा / शशि सहगल

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पहाड़ों पर उगे
सीधे तने वृक्ष
छूना चाहते हैं नीला आसमान
आसमान और वृक्ष
दोनों का जो भी माजरा होगा, होता रहेगा
मैं तो मन्त्रमुग्ध
देखती हूँ घनी शाखाएँ
शाखाओं से छनती धूप
जो धरती पर इन्द्रजाल बिखेरती
लुका-छिपी खेल रही है।