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हरी किरण / निकअलाय ज़बअलोत्स्की / अनिल जनविजय

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सागर से नीले आकाश में प्रथम प्रहर
चमक रहे हैं गिरजों के गुम्बद सुनहरे
सफ़ेद सिर वाले बाज़ों का यह शहर<ref>मसक्वा का एक प्राचीन नाम</ref>
दमक रहा है गहराई में समुद्र की गहरे

सफ़ेद बादलों के बड़े एक ढेर से जैसे
बसा हुआ है शहर ज्यों समुद्र के किनारे
जहाँ पल भर को सूरज ख़ूब धधकता है
परछाईं उसकी दहके है जल के कगारे

मैं रवाना होता हूँ सुदूर सफ़र पर अपने
मंज़िल पास नहीं है मुझे, दूर देश है जाना
सफ़ेद सिरों वाले इस नरक के लिए भी
अब मुझे ही पड़ेगा कोई रास्ता बनाना

बादलों की ऊँचाई पर जाके मैं खोल दूँगा
ऊपर-नीचे आने-जाने के वे सारे दरवाज़े
हरी किरण जो फेंकेगी मुझे, उसे बोल दूँगा
भूल जा उसकी नज़र के तू सारे तकाज़े

स्वर्णिम सुख की कुंजी है, तू याद रख इतना
पन्ने की तरह दमक रही वो, चमक रही कितना
आएगी अभी, पास मेरे वो धीमी हरी किरण
भगाएगी दुख, लाएगी सुख, होगा उससे मिलन

दूर-दूर तक फैली मीनारें और गढ़ सब टूटेंगे
ताक़त का दम्भ ख़त्म होगा, सब काँच से फूटेंगे
फीकी होगी हरी किरण जब, वहाँ धरती से दूर
गर्व, घमण्ड, मद मान-अभिमान होगा सबका चूर

मन की शक्ति है जिसके पास और है पूरा चेतन
सामर्थ्य और बल है इतना कि रहे हमेशा सचेतन
बस, वहीं पुरेगा सफ़ेद सिर वाले बाज़ों का नगर
हरी किरण से ख़ूब चमकेगा उन साज़ों का नगर

1958
मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
         НИКОЛАЙ ЗАБОЛОЦКИЙ
                   Зеленый луч

Золотой светясь оправой
С синим морем наравне,
Дремлет город белоглавый,
Отраженный в глубине.

Он сложился из скопленья
Белой облачной гряды
Там, где солнце на мгновенье
Полыхает из воды.

Я отправлюсь в путь-дорогу,
В эти дальние края,
К белоглавому чертогу
Отыщу дорогу я.

Я открою все ворота
Этих облачных высот,
Заходящим оком кто-то
Луч зеленый мне метнет.

Луч, подобный изумруду,
Золотого счастья ключ —
Я его еще добуду,
Мой зеленый слабый луч.

Но бледнеют бастионы,
Башни падают вдали,
Угасает луч зеленый,
Отдаленный от земли.

Только тот, кто духом молод,
Телом жаден и могуч,
В белоглавый прянет город
И зеленый схватит луч!

1958 г.

शब्दार्थ
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