हरी तुम कायकू प्रीत लगाई॥ध्रु०॥
प्रीत लगाई परम दुःख दीनो। कैशी लाज न आई॥१॥
गोकुल छांड मथुरेकु जाये। वामें कोन बराई॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। तुमकू नंद दुवाई॥३॥
हरी तुम कायकू प्रीत लगाई॥ध्रु०॥
प्रीत लगाई परम दुःख दीनो। कैशी लाज न आई॥१॥
गोकुल छांड मथुरेकु जाये। वामें कोन बराई॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। तुमकू नंद दुवाई॥३॥