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हरी सुनहरी, ख़ाक उड़ाने वाला मैं / मनचंदा बानी
Kavita Kosh से
हरी सुनहरी, ख़ाक उड़ाने वाला मैं ।
शफ़क<ref>लालिमा</ref> शजर<ref>पेड़</ref> तसवीर बनाने वाला मैं ।
ख़ला के सारे रंग समेटने वाली शाम
शब की मिज़ह<ref>रात की पलकें</ref> पर ख़्वाब सजाने वाला मैं ।
फ़ज़ा<ref>वातावरण, खुला और हरा-भरा मैदान</ref> का पहला फूल खिलाने वाली सुब्ह
हवा के सुर में गीत मिलाने वाला मैं ।
बाहर भीतर फ़स्ल उगाने वाला तू
तेरे ख़ज़ाने सदा लुटाने वाला मैं ।
छतों पे बारिश, दूर पहाड़ी, हल्की धूप
भीगने वाला, पंख़ सुखाने वाला मैं ।
चार दिशाएँ जब आपस में घुल मिल जाएँ
सन्नाटॆ को दुआ बनाने वाला मैं ।
घने बनों में, शंख बजाने वाला तू
तेरी तरफ़ घर छोड़ के आने वाला मैं ।
शब्दार्थ
<references/>