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हरेक बात न क्यों ज़ह्र-सी हमारी लगे / फ़राज़

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हर एक बात न क्यूँ ज़ह्र-सी हमारी लगे
कि हमको दस्ते-ज़माना<ref>संसार के हाथों</ref> से ज़ख़्म<ref>घाव</ref> कारी<ref>गहरे</ref> लगे

उदासियाँ हों मुसलसल<ref>लगातार</ref> तो दिल नहीं रोता
कभी-कभी हो तो ये क़ैफ़ियत<ref>दशा</ref> भी प्यारी लगे

बज़ाहिर<ref>प्रत्यक्षत:</ref> एक ही शब <ref>रात्रि</ref>है फ़िराक़े-यार<ref>प्रिय की जुदाई</ref> मगर
कोई गुज़ारने बैठे तो उम्र सारी लगे

इलाज
 इस दर्दे-दिल-आश्ना<ref>दर्द को जानने वाले दिल का</ref> का क्या कीजे
कि तीर बन के जिसे हर्फ़े- ग़मगुसारी<ref>सहानुभूति के शब्द</ref> लगे

हमारे पास भी बैठो बस इतना चाहते हैं
हमारे साथ तबीयत अगर तुम्हारी लगे

‘फ़राज़’ तेरे जुनूँ <ref>उन्माद</ref>का ख़याल है वर्ना
ये क्या ज़रूर कि वो सूरत सभी को प्यारी लगे

शब्दार्थ
<references/>