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हरेक बात सियासी / हरिवंश प्रभात
Kavita Kosh से
हरेक बात सियासी, कुबूल मत करना।
चाँद को रोटी समझने की भूल मत करना।
है शॉर्टकट का ज़माना, तू शार्ट कट ही चल,
किसी सवाल को हरगिज़ भी तूल मत करना।
भलाई कर तू गरीबों का तो भला होगा,
कभी-भी नेकी का बदला वसूल मत करना।
बहार आएगी इक दिन, तुम्हारे गुलशन में,
निढाल होकर कभी मन बबूल मत करना।
नगर में गाँव से जाकर, बदल न जाना तुम,
उम्मीद अपने बुजुर्गों की, धूल मत करना।
‘प्रभात’ अपने दु:खों को जगह दे जीवन में
ख़ुशी की राह ही चलने की भूल मत करना।