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हरेक बार मुझे ऐसा कुछ लगा जैसे / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
हरेक बार मुझे ऐसा कुछ लगा जैसे
किसी ने कानों में चुपके से कुछ कहा जैसे
तुम्हारी याद क्या आई है इस अकेले में
सिरहाने मोगरे का फूल हो खिला जैसे
दुखों का आना-जाना ऐसे लगा है अब तो
ये जिन्दगी हो मेरी उनका रास्ता जैसे
मैं बदहवास-सा बेचैन फिरा करता हूँ,
सभी के एक-से चेहरे हैं और पता जैसे
किसी की यादें अभी मन में आ रहीं ऐसे
रवां हो दूर की घाटी में काफिला जैसे
सभी की बातें खतम होती हैं मुझी पर आ
मैं हो गया हूँ जहां भर का माजरा जैसे
सभी ने हाथों में पत्थर उठा लिए फौरन
जब भी अमरेन्द्र को ठोकर लगी, गिरा जैसे।