भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हरे-हरे निमुआँ के हरे-हरे पातवा से ताही तले / महेन्द्र मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हरे-हरे निमुआँ के हरे-हरे पातवा, से ताही तले।
सइयाँ धुनिया रमवलें से ताही तले।
हमरा सइयाँ जी से केहू जनि बोले से धीरे-धीरे
रस बेनिया डोलइबों से धीरे-धीरे।
हमरा सइयाँ जी के बड़ी-बड़ी अँखिया से हमरे से
ए लड़ाइले नजरिया से हमरे से।
काहू के गज मोती अन धन सोनवाँ से मोरा लेखे,
मोरा सेज के गहनवाँ से मोरा लेखे।
कहत महेन्द्र सुनु सखिया सीहागिन हम मनाइलेबो
आपन रूसल मोहनवाँ मनाई लेबो।