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हरे और हरे के बीच / नंदकिशोर आचार्य
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अपने सभी रंगों में
रूपों में
खिला है हरा घाटी में
सब कुछ भरा है।
और यहाँ.....इस घने झुरमुट में
हरे और हरे के बीच
एक अवकाश है
जिस में खिलती है एक श्यामल लय
सब तरह के हरों से झरती हुई
भरती हुई हर साँस
मेरी हर धड़कन में गूँजती:
हौले-से खोलती वह द्वार
जो उसी का उजड़ा हुआ आवास है।
(1981)