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हरे रामा चले ललकि कपि वीर (कजली) / आर्त
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हरे रामा चले ललकि कपि वीर लंक ललकारी रे हारी ।।
मुखहिं मेलि मुद्रिका मुदित मन मारुति मंगलकारी रामा
हरे रामा पहुँचे पयोनिधि पार प्रबल प्रणधारी रे हारी ।।1।।
चढ़ि कंगूर वीथिन्ह वन खोजत विकल वज्र वपुधारी रामा
हरे रामा भेंटि विभीषण भक्त भयो सुख भारी रे हारी ।।2।।
सुनि संकेत सकेलि सोधि सिय संकुल सुख संचारी रामा
हरे रामा निरखि निपट निःशंक नवहि निसिचारी रे हारी ।।3।।
दलि दल दनुज दमकि दामिनि ज्यों लूम लंक लगिजारी रामा
हरे रामा सुत सम सिय सनमानि 'आर्त' दुख टारी रे हारी ।।4।।