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हरे रामा लागे सावन के महीना / बुन्देली

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

हरे रामा लागे सावन के महीना
के झूला डारो रे हारी।
रिमझिम रिमझिम बरसत मेघा रामा,
भीज गई सब देह कि
भीजी मोरी साड़ी रे हारी। हरे...
रेशम डोर चन्दन के पलना रामा,
झूलें राधा कृष्ण कदम की डारी रे हारी। हरे...
दादुर मोर पपीहा बोले रामा,
घाट-घाट मोहन की मुरलिया बाजे, प्यारी रे हारी। हरे...
हरे रामा लागे सावन के महीना...