हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
हरे हरे बांसों का बंगला छवा दो जी
जिस चढ़ सौवे लाडली का बाबा
कहो लाडो कहो बिटिया कैसा वर ढूंढैं जी
चन्दा नहीं, सूरज नहीं, नहीं रैन अन्धेरी
नदी किनारे महादेव तपस्या करै
वही परमान्द हमारे मन भाये जी
हरे हरे बांसों का बंगला छवा दो जी
जिस चढ़ सौवे लाडली का बाबा
कहो लाडो कहो बिटिया कैसा वर ढूंढैं जी
चन्दा नहीं, सूरज नहीं, नहीं रैन अन्धेरी
नदी किनारे महादेव तपस्या करै
वही परमान्द हमारे मन भाये जी