हर अक्षर कुछ तो कहता है / राघव शुक्ल
हर अक्षर कुछ तो कहता है
कर्मठ जीवन ही अपनाओ
खतरों से तुम हाथ मिलाओ
गहन दृष्टि चिंतन हो प्रभु का
घर को मंदिर एक बनाओ
अङ्कन करता निज हस्ताक्षर
ङ भी कब खाली रहता है
हर अक्षर कुछ तो कहता है
चन्दन रहे चरित्र हमारा
छत्र रहे गुरु बनें सहारा
जगमग दीपक जलें नेह के
झरे प्रेम की निर्झर धारा
कञ्चन बनता है अक्षर जब
ञ् से अनुरंजित रहता है
हर अक्षर कुछ तो कहता है
टकराओ यदि मुश्किल आए
ठहर नहीं बढ़ बिन घबराए
डर के आगे जीत मिलेगी
ढाल अडिग पौरुष बन जाए
ण अखण्ड है महिमामण्डित
यह तो अविभाजित रहता है
हर अक्षर कुछ तो कहता है
तन से हो सेवा जन जन की
थकना सदा हार है मन की
दर्पण सा जीवन हो मुखरित
धर्मशील गति हो जीवन की
नत मत होना,नमन करो तुम
नमन सदा निश्छल रहता है
हर अक्षर कुछ तो कहता है
पत्थर तुम तोड़ो हर भ्रम का
फल शुभ मिलता अटल नियम का
बच्चे जैसा तन हो मन हो
भस्म करो तुम दर्प अहम का
म पावन मणि रामनाम की
म ही ओम अहद रहता है
हर अक्षर कुछ तो कहता है
यक्ष प्रश्न का समाधान तुम
रथ पर हो अर्जुन समान तुम
लक्ष्य साधना ही अब होगा
वश में कर लो मन वितान तुम
शरशैय्या से इस जीवन में
ष मूर्धन्य बना रहता है
हर अक्षर कुछ तो कहता है
सत्य आचरण हो उर संचित
हर क्षण प्रभु को रहे समर्पित
क्षय हों पाप सुखद हो जीवन
त्रय तापों से मुक्ति सुनिश्चित
ज्ञान प्रदान करे हर अक्षर
फिर तू भी क्यों चुप रहता है
हर अक्षर कुछ तो कहता है