Last modified on 18 अगस्त 2018, at 21:21

हर अदा आबे-रवां की लहर है / नासिर काज़मी

हर अदा आबे-रवां की लहर है
जिस्म है या चांदनी का शहर है

फिर किसी डूबे हुए दिन का ख़याल
फिर वही इबरतसराए-दहर है

उड़ गये शाख़ों से ये कह के तयूर
इस गुलिस्तां की हवा में ज़हर है।