हर आदमी दुःख दर्द में गल्तां नज़र आया / रमेश 'कँवल'
हर आदमी दुख दर्द में ग़लतां1 नज़र आया
इन्सान से ग़ाफ़िल2 मुझे यज्दां3 नज़र आया
ऐ दौरे-तरक़्क़ी4 तेरी सौग़ात5 अजब है
जिस चेहरे को देखा वो परेशां नज़र आया
उलझी रही शोलों से हर इक शाख़-ए-निशेमन
गुलशन में अजब जश्ने-चिराग़ां6 नज़र आया
तुम साथ थे जब तक ये ख़ुदाई थी मेरे साथ
तुम बदले तो बदला हुआ दौरां नज़र आया
रूस्वा सही, बर्बाद सही, फ़ख़्7 है मुझको
मैं इश्क़ के अफ़साने8 का उन्वां9 नज़र आया
क्यों रास वफ़ा तुझको न आर्इ मेरे महबूब
क्यों तू मेरी उल्फ़त से गुरेज़ां10 नज़र आया
लार्इ है हविस मुझको 'कंवल' मोड़ पे ऐसे
मैं अपनी मुहब्बत से पशेमां11 नज़र आया
1. परेषान 2. बेपरवाह, विमुख 3. र्इश्वर
4. उन्नति, प्रगतिकायुग 5. उपहार 6. दीपोत्सव
7. गर्व 8. कथा 9. शीर्षक 10. पृथक-विमुख
11. लज्जित।