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हर इक चेहरे से रंगत लापता है / अलका मिश्रा

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हर इक चेहरे से रंगत लापता है
जिसे भी देखिये वह ग़मज़दा है

मेरे महबूब की सादा दिली पर
बड़ी शिद्दत से मेरा दिल फ़िदा है

किसी की बेरुख़ी सह कर तो देखो
फ़ना होने का अपना ही मज़ा है

ज़माने भर का जिसने दर्द बाँटा
निशाने पर सभी के वह रहा है

निगाहों से छलक जाएं न अरमां
हमारा दिल बग़ावत कर रहा है

वफ़ा की रजगुज़र आसां नहीं है
मगर मेरा जुनूं ज़िद पर अड़ा है

मिटा दो उस रवायत को जहाँ से
मोहब्बत करना जिसमें इक ख़ता है