भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हर इक जांदार को होती है जैसे आस्ताने की / शोभा कुक्कल
Kavita Kosh से
हर इक जांदार को होती है जैसे आस्ताने की
उसी सूरत बशर की है ज़रूरत शामियाने की
ज़रूरत इसकी होली, ईद, दीवाली पे पड़ती है
सभी कौमों को रहती है ज़रूरत शामियाने की
बग़ैर इसके कोई शादी कोई जलसा नहीं होता
ज़रूरत बन गया है शामियाना अब ज़माने की
ये मेहमानों को गर्मी और बारिश से बचाता है
इसी ख़ातिर तो पड़ती है ज़रूरत शामियाने की
कोई बच्चा हो, बूढा हो, जवां हो, मर्द हो ज़न हो
ज़रूरत सबको है मां की दुआ के शामियाने की
वो आएंगे तो सज जायेगा अपने आप घर अपना
नहीं हैं कुछ ज़रूरत हमको अपना घर सजाने की।