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हर एक घड़ी शाक़ गुज़रती होगी / जाँ निसार अख़्तर

हर एक घड़ी शाक़ गुज़रती होगी
सौ तरह के वहम करके मरती होगी

घर जाने की जल्दी तो नहीं मुझको मगर
वो चाय पर इन्तज़ार करती होगी