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हर एक बात तेरी बे-सबात कितनी है / 'बेख़ुद' देहलवी

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हर एक बात तेरी बे-सबात कितनी है
पलटना बात को दम भर में बात कितनी है

अभी तो शाम हुइ है अभी तो आए हो
अभी से पूछ रहे हो के रात कितनी है

वो सुनते सुनते जो घबराए हाल-ए-दिल बोले
बयान कितनी हुई वारदात कितनी है

तेरे शहीद को दूल्हा बना हुआ देखा
रवाँ जनाज़े के पीछे बरात कितनी है

किसी तरह नहीं कटती नहीं गुज़र चुकती
इलाही सख़्त ये क़ैद-ए-हयात कितनी है

हमारी जान है क़ीमत तो दिल है बैआना
गिराँ-बहा लब-ए-नाज़ुक की बात कितनी है

जो शब को खिलते हैं ग़ुंचे वो दिन को झड़ते हैं
बहार-ए-बाग़-ए-जहाँ बे-सबात कितनी है

महीनों हो गए देखी नहीं है सुब्ह-ए-उम्मीद
किस ख़बर ये मुसीबत की रात कितनी है

अदू के सामने ये देखना है हम को भी
किधर कोहै निगह-ए-इल्तिफ़ात कितनी है

ग़ज़ल लिखें भी तो क्या ख़ाक हम लिखें ‘बे-ख़ुद’
ज़मीन देखिए ये वाहियात कितनी है