हर ओर है फैला हुआ यों स्वार्थ भ्रष्टाचार।
सद नीति वालों की जगत को है नहीं दरकार॥
हर पग बड़ी फिसलन अनोखी राह बिखरे शूल
सपना न कोई नैन का जो है हुआ साकार॥
हम सत्य पथ का अनुगमन करते रहे हैं नित्य
लेकिन हमेशा ठोकरों का ही मिला उपहार॥
आतंक से दहली धरा सहमे हुए सब लोग
हर बार प्रभु तुमने उतारा भूमि का है भार॥
बचना कठिन है राक्षसों के वृन्द लेते घेर
दुरवृत्तियों के दैत्य हैं हमको रहे ललकार॥
मन को मिले वह शक्ति सद्गुण का न छूटे साथ
नित दीन दुखियों की सुश्रुषा का मिले अधिकार॥
ये पाश माया मोह के कसते सदा मन प्राण
तुम बिन न कन्हैया कौन है जो कर सके उद्धार॥