भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हर कदम आजमाये गये / रोशन लाल 'रौशन'
Kavita Kosh से
हर कदम आजमाये गये
फिर भी हम मुस्कुराये गये
छोड़कर हमको किस मोड़ पर
सारे अपने-पराये गये
खाक की आमतें जब खुलीं
हर कदम सिर झुकाये गये
उनको इल्जाम क्या दीजिए
दिल के हाथों सताये गये
हम कि खामोश देखा किये
वो लगाए-बुझाये गये
लोग देरो हरम तक गये
वो कहीं और पाये गये