भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हर कदम आजमाये गये / रोशन लाल 'रौशन'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हर कदम आजमाये गये
फिर भी हम मुस्कुराये गये

छोड़कर हमको किस मोड़ पर
सारे अपने-पराये गये

खाक की आमतें जब खुलीं
हर कदम सिर झुकाये गये

उनको इल्जाम क्या दीजिए
दिल के हाथों सताये गये

हम कि खामोश देखा किये
वो लगाए-बुझाये गये

लोग देरो हरम तक गये
वो कहीं और पाये गये