भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हर कदम जीस्त ये बताती है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
हर कदम जीस्त ये बताती है
हार के बाद जीत आती है
धूप छाया सी जिंदगी होती
हमको मुश्किल यही सिखाती है
हर दुआ कब क़बूल है होती
क्यों मुसीबत तुझे रुलाती है
सर से ऊपर से है गुज़र जाती
धूल को जब हवा उड़ाती है
जाने अब क्या हुआ नज़र मेरी
उस के चेहरे पे ठहर जाती है
मेरी आँखों में ख़्वाब रहने दे
आसमानों को नींद आती है
अब खुशी की न चाह है बाक़ी
याद तेरी हमें बुलाती है