भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हर क़दम नई / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
घनी धुन्ध में गुम
यह वनखंडी
हर क़दम नई होती ही
जाती है
भटकाती है जितना
नया कर जाती है उतना ही—
अपनी घनी धुन्ध में
लेती हुई मुझे ।
—
18 नवम्बर 2009